निरंतर गतिमान सार्वकालिक उत्सव
राजा चक्रधर सिंह के कला-स्वप्न का इंद्रधनुषी रूपांकन है चक्रधर समारोह| दरअसल हमारे अपने जीवन के रंगमंच पर, धरती – आकाश के रंगमंच पर ऐसा समारोह निरंतर सम्पन्न होता रहता है| चक्रधर समारोह के उल्लास के घुँघरू, आनंद की रागिनी और खुशियों की रोशनी भरे समूह-वाद्य निरंतर बजते रहते है.. कुछ कुछ कबीर साहब के अनहद नाद की मानिंद|
जब कभी जिंदगी ऐसे ही गुनगुनाती है – जब पंछी गीत गाते है, सिंदूरी किरणों की सुनहली पायल छनकाती, जब धीरे धीरे भोर उतरती है तो पूरी कायनात मे जैसे एक चक्रधर समारोह आयोजित हो जाता है| काले कजरारे बादलो को अपने बड़े से जुड़े मे चाँद खोसे, जब धीरे धीरे रात मुस्कुराती है तो पूरा आसमान चक्रधर समारोह जैसे उत्सव के आनंद से विभोर हो उठता है|
यह चक्रधर समारोह ही है जो हमारी खुशियों को उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई मे सजा देता है| हमारी गीली गीली हंसी और सीली सीली पीड़ा को पं. हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी मे ढाल देता है| यही चक्रधर समारोह, उस विराट की प्रार्थना के लिए, हमारे कंठ मे गायन ऋषि पं. जसराज जी के दिव्य सुर भर जाता है| बुद्ध से लेकर ओशो तक, अंतस के इसी संगीत और भीतरी सुरताल की चर्चा करते आए है| आनंद तत्व के रूप मे यही शाश्वत संगीत, चक्रेधर समारोह मे हमेशा स्पंदित होता रहता है| दरअसल चक्रधर समारोह एक सर्वकालिक एवं निरंतर गतिमान उत्सव है|